जमीन विवाद बना बवाल-ए-जान: राजस्व अमले की ढिलाई और जिला प्रशासन की लापरवाही

अम्बेडकरनगर में जमीन विवाद: खेत बने रणभूमि: अम्बेडकरनगर में जमीन विवाद अब बवाल-ए-जान का रूप ले चुके हैं। तहसील और जिला प्रशासन की लापरवाही के चलते खेत-खलिहान रणभूमि में तब्दील हो रहे हैं। राजस्व विभाग के कानूनगो और लेखपाल पैमाइश और पत्थर नसब के नाम पर खुलेआम उगाही कर रहे हैं, जबकि जिम्मेदार अधिकारी फाइलों में ‘आख्या’ ढूंढने में व्यस्त हैं।
Land dispute in Ambedkarnagar: farm becomes battlefield

तहसील और थाना समाधान की खानापूर्ति

सरकार ने तहसील दिवस और थाना समाधान दिवस जैसे मंच बनाए ताकि जमीन विवादों का त्वरित निपटारा हो सके। लेकिन हकीकत यह है कि अधिकारी मौके पर जाने की बजाय कुर्सी से चिपके रहते हैं। फरियादी फाइलें लेकर चक्कर काटते हैं, लेकिन समाधान की जगह केवल तारीखें मिलती हैं। नतीजा? हर तीसरी आपराधिक घटना जमीन विवाद से जुड़ी है।https://www.amarujala.com/uttar-pradesh/pratapgarh/71504014844-pratapgarh-news

खून-खराबे का कारण बनते विवाद

भूमिधरी खेतों पर अवैध कब्जा, बंटवारे के झगड़े, और रास्तों को लेकर मारपीट अब आम हो चुकी है। कई मामलों में विवाद इतने बढ़ जाते हैं कि लाठी-डंडों से लेकर खून-खराबे तक की नौबत आ जाती है। राजस्व विभाग की लापरवाही के कारण छोटे-छोटे मामले बड़े बवाल में बदल रहे हैं।https://www.aajtak.in/uttar-pradesh/story/land-dispute-bullies-cut-off-feet-of-father-and-son-demand-to-demolish-house-of-accused-bulldozers-in-basti-lclcn-1878161-2024-02-12

घूसखोरी का खुला खेल

राजस्व महकमे में सीमांकन और पैमाइश के लिए किसानों को महीनों कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ते हैं। धारा 24 के तहत दावा दायर करने और ट्रेजरी में हजारों रुपये जमा करने के बाद भी नतीजा सिफर। लेखपाल और पुलिस की अनुपस्थिति आम बात है। अगर कोई अधिकारी मिल भी जाए, तो ‘सुविधा शुल्क’ की मांग खुलेआम होती है। रुपये मिलते ही ‘साहब’ का रवैया बदल जाता है। https://www.amarujala.com/uttar-pradesh/pratapgarh/71504014844-pratapgarh-news

सैदापुर तालाब का अनसुलझा मामला

सैदापुर में ग्राम प्रधान पिछले दस साल से तालाब की 907 गाटा जमीन पर अवैध कब्जा हटवाने के लिए दफ्तरों के चक्कर लगा रहे हैं। तहसीलदार के यहां मुकदमा दर्ज होने के बावजूद केवल तारीखें मिल रही हैं। बारिश का मौसम आने से जल निकासी और रास्तों की समस्या बढ़ रही है, जिससे बीमारियों का खतरा भी मंडरा रहा है। फिर भी, जिम्मेदार अधिकारी मामले को गंभीरता से नहीं ले रहे।

राजस्व कर्मियों का गैरजिम्मेदाराना रवैया

तिलक टांडा में भी राजस्व विभाग की मिलीभगत से फर्जी आवंटन का मामला सामने आया है। गाटा संख्या 220 की जमीन पर 32 लोगों के नाम आवास आवंटन हुआ, लेकिन अभिलेखों में हेराफेरी की गई। पीड़ित शनि कुमार ने बताया कि उनकी माता के नाम दर्ज जमीन को गलत तरीके से दूसरों के नाम चढ़ाया गया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।

जनप्रतिनिधियों की अनसुनी

जब ग्राम प्रधान जैसे जनप्रतिनिधियों की बात नहीं सुनी जा रही, तो आम ग्रामीणों का क्या हाल होगा? सैदापुर जैसे मामलों में भूतपूर्व और वर्तमान प्रधान लगातार प्रयास कर रहे हैं, लेकिन नतीजा सिफर। प्रशासन की कच्छप गति से फाइलें आगे बढ़ रही हैं, और समाधान की कोई उम्मीद नहीं दिखती।

प्रशासन से सवाल

जमीन विवादों के निपटारे में देरी और घूसखोरी की वजह से जनता का विश्वास प्रशासन से उठ रहा है। अगर समय रहते पैमाइश और अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई हो जाए, तो बड़े विवादों को रोका जा सकता है। लेकिन सवाल वही—कब जागेगा सिस्टम?

Sachtak.in की मांग

Sachtak.in जनता की आवाज को बुलंद करने के लिए प्रतिबद्ध है। हम मांग करते हैं कि अम्बेडकरनगर में जमीन विवादों के निपटारे के लिए स्वतंत्र जांच टीमें गठित हों। राजस्व कर्मियों की घूसखोरी पर सख्त कार्रवाई हो, और अवैध कब्जों को तत्काल हटाया जाए। तहसील और थाना समाधान दिवस को प्रभावी बनाया जाए ताकि फरियादियों को तारीखें नहीं, समाधान मिले।

निष्कर्ष

अम्बेडकरनगर में जमीन विवाद और राजस्व अमले की ढिलाई ने आम जनता का जीना मुहाल कर दिया है। जब तक प्रशासन और राजस्व विभाग इस मुद्दे पर सख्ती नहीं दिखाएंगे, खेत खून मांगते रहेंगे, और फाइलें धूल फांकती रहेंगी। Sachtak.in पर बने रहें और इस गंभीर मुद्दे पर ताजा अपडेट्स पाएं।

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